Tuesday, December 4, 2012

Ek Gazal

चाँद नज़रें नहीं मिलाता,मुझसे मुंह छुपाने लगा है,
बादल भी कुछ दिनों से,गीत जुदाई के गाने लगा है,

रोज़ एक कतरा, खुद का , कहीं खो सा देता हूँ मैं ,
वो जो मुझमें रहता था, मुझे छोड़ के जाने लगा है,

कुछ रोज़ से ये आसमां भी देखो, धुँआ धुँआ सा है
लगता है कहीं कोई , मेरे खतों को जलाने लगा है,


एकांत में वो शांत जगह , जहाँ हम साथ बैठते थे,
शोर रहता है , वहां से हर कोई आने-जाने लगा है,

मैं तो उसकी रुसवाई का, मातम भी न मना पाया ,
वो फिर नया सा बनके, नए सपने सजाने लगा है,

रहा नहीं कुछ वास्ता, इंसान का सच और वफ़ा से,
खुदा भी कैसे कैसे लोग और ज़माने बनाने लगा है, !!

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