Wednesday, February 23, 2011

खुद से ना हारूँ

खुद ही खुद से हार जाऊँ ये गवारा नहीं होता,
पर रोज-रोज यूं हार कर भी गुजारा नहीं होता,
लोगों और सपनों को अपना बनाना पड़ता है दोस्त,
कहने भर से ही, कोई हमारा नहीं होता..!!!

जब खुद से उम्मीद अब टूटने लगी,
कुछ कुछ ज़िंदगी हाथ से छूटने लगी,
हर रोज कुछ खो सा जाता है,
जो दुनियाँ हमने बनाई थी हुमें ही लूटने लगी..!!!

तब दिल पे हाथ रखा तो धड़कन ने एक हल दिया,
माँ-बाप का आशीर्वाद, मोहब्बत का बल दिया,
रख के भरोसा मन में,शरीर में ताकत लड़ने की,
मैंने अपनी मंज़िलें तय की, और चल दिया..!!!

मंज़िलों तक मुझे अपने रंग से, ढंग से जाना है,
पार कर हर तूफान, मझधार में भी गीत गाना है,
जियूं ज़िंदगी ऐसे कि खुद से कोई शिकायत ना रहे,
तब लोग भी कहने लगेंगे, अब तो राहुल का ज़माना है..!!!

1 comment:

  1. वाह क्या बात है ?
    सरल , संक्षिप्त ऐवम पूर्ण कृति

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