Friday, February 25, 2011

मन का गीत


चलो मन में इक गीत गुनगुनाए हम,
क्यूँ न खुद को खुद में उलझाए हम,
भावनाओ के आवेग में ढल चुके हम,
बहुत हुआ चलो खुशियों को रिझाएँ हम..!!!


वक़्त किसी का गुलाम रहा है कब,
उसकी क्या गरज समझौता करे अब,
जन्म लिया है, भवसागर में जब,
तो क्यूँ लहरों से घबराएँ सब..!!!


ख्वाबों की चादर,मेहनत की पतवार,
बुलंद करें इरादे, झेलें हर वार,
लगा दो ताकत पूरी इस बार,
मंज़िल मिलने को व्याकुल उस पार..!!!


खुशियां कहाँ सबको मिलती हैं,
मिल जाएँ तो कहाँ ठहरती हैं,
मौका मिले तो मुस्कुरा लिया करो,
बिना मुस्कान कहा ज़िंदगी चलती है..!!!

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